Sunday, September 03, 2006

My third poem

सोया था मैं , सुशुप्त थी सारी कलाएं

अनजान , बेरंग , एक्स्वर थी इस दुनिया की संभावनाएं

तुमसे मिलके जग उठी हैं, मधुर मनोहर अभिलाषाएं


जाना मैंने हूँ मैं कौन , और कौन हो तुम

तुझ में हूँ मैं , और मुझमे बसी हो तुम

दो रूप हमारे , पर एक अस्तित्व हैं हम

तेरे बिन मैं अधूरा , और मेरे बिना अधूरी तुम


हमारे संगम से हुआ शुरू , जीवन का असली क्षण

और होके एक , रचेंगे हम एक नया जीवन


जिस तरह सम्पूर्ण , मधुर होगा अपना प्रेम भरा नवजीवन

उसी तरह , याद करो प्रिये , रची थी सृष्टि हमने एक दिन

रचे थे हमने सृष्टि के पंच तत्त्व

सूर्य , गगन , पृथ्वी , अग्नि और पवन

तब धारण किया मनुज देह हमने , इन पंच भूतों के आसन पर

अभी तक मौजूद हैं इनका एक अंश इस देह के भीतर

रची थी हमने प्रकर्ति , बनाए थे हमने ही यह नियम

नदी , वृक्ष , पक्षी , पुष्प और मौसम

मन मोहित कर लेने को ही लिए इन्होने जन्म


याद करो प्रिये , जीवन चित्र में हमने ही भरे थे सुख और गम के रंग

इन दोनों रंग के मिलन से रंगीन हुआ है अपना स्वप्न

तेरा मेरा साथ है अनंत से , ये जीवन बस एक क्षण

इस पहचान से करे शुरू , एक नई सृष्टि का सृजन

1 comment:

Anonymous said...

सोये थे हम, और-
सुशुप्त था पूरा आई-पी-वन

आगमन हुआ आपका, और-
जाग उठा हर एक मन

मन के तस्सवुर में,
जिंदा था एक और तन

आपकी काविताओ ने,
जीत लिया हमारा मन

शराब के नशे में लडकियां,
और गांजा मार के बन्दे टुन्न

आपकी कातिल भुजाओं मैं था इतना दम
की मर गए उसे देख के हम

आपके शामियानें में शामिल होकर
चिलमन सी गुफ्फाओं में खो दिया हमने धन

तुच्छ है सब वन, मन, तन, हम, धन
आब आप की तारीफ़ में क्या कहे हम -

दुनिया पे राज़ करता हैं
बलवंत सिंग रावत - The Number One!!