This was a question in form of a poem asked by my wife once
साथ दोगे ना ?
खिली सुबह हो रात घनेरी
साथ कोई हो हूँ
कभी अकेली
साथ मेरा तुम दोगे ना?
दिखा सकूं
छिपा हो मन में
कहूँ तुमसे
खामोश रहूँ मैं
प्यार मेरा समझोगे ना ?
लगूँ परी सी
उलझी , डरी सी
युवा रहूँ
प्रौढ़ जर्जरी सी
पास मेरे रहोगे ना?
रेशम सा हो
स्पर्श टाट सा
सधा हुआ हो
कांपते पात सा
हाथ मेरा थामोगे ना ?
साथ मेरा तुम दोगे ना?
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Here was my response to my lovely wife:
अभी शुरू हुआ है अपने जीवन का सफ़र ,
कठिन है डगर , चलना है साथ ।
गर तुम्हारा साथ ना दूंगा तो किसका दूंगा ।
नवजात शिशु हूँ मैं , सीख रहा हूँ खेल के नियम
अगर हो जाये मुझसे भूल तो ना होना उदास तुम
अकेला अधूरा ही चल रहा था मैं जीवन डगर में,
तुमसे मिलके जान मैंने अर्थ जीवन का
तुमसे हुआ है जीवन सम्पूर्ण ,
अगर मैं अपना साथ ना दूंगा तो किसका दूंगा ।
तुमसे मिलके पाया हैं मैंने प्रेम अमृत ,
सुना है बड़े सौभाग्य से मिलता है प्रेमी हृद्येश्वर
गर अपने इश्वर का साथ ना दूंगा तो किसका दूंगा ।
Tuesday, September 11, 2007
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1 comment:
Kathin Hai Raahguzar... Thodi Door Saath Chalo
Bahut Kada Hai Safar... Thodi Door Saath Chalo
Nashe Mein Choor Hoon Main Bhi, Tumhein Bhi Hosh Nahin
Bada Maza Ho Agar... Thodi Door Saath Chalo
-Ahmed Faraz
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