सोया था मैं , सुशुप्त थी सारी कलाएं
अनजान , बेरंग , एक्स्वर थी इस दुनिया की संभावनाएं
तुमसे मिलके जग उठी हैं, मधुर मनोहर अभिलाषाएं
जाना मैंने हूँ मैं कौन , और कौन हो तुम
तुझ में हूँ मैं , और मुझमे बसी हो तुम
दो रूप हमारे , पर एक अस्तित्व हैं हम
तेरे बिन मैं अधूरा , और मेरे बिना अधूरी तुम
हमारे संगम से हुआ शुरू , जीवन का असली क्षण
और होके एक , रचेंगे हम एक नया जीवन
जिस तरह सम्पूर्ण , मधुर होगा अपना प्रेम भरा नवजीवन
उसी तरह , याद करो प्रिये , रची थी सृष्टि हमने एक दिन
रचे थे हमने सृष्टि के पंच तत्त्व
सूर्य , गगन , पृथ्वी , अग्नि और पवन
तब धारण किया मनुज देह हमने , इन पंच भूतों के आसन पर
अभी तक मौजूद हैं इनका एक अंश इस देह के भीतर
रची थी हमने प्रकर्ति , बनाए थे हमने ही यह नियम
नदी , वृक्ष , पक्षी , पुष्प और मौसम
मन मोहित कर लेने को ही लिए इन्होने जन्म
याद करो प्रिये , जीवन चित्र में हमने ही भरे थे सुख और गम के रंग
इन दोनों रंग के मिलन से रंगीन हुआ है अपना स्वप्न
तेरा मेरा साथ है अनंत से , ये जीवन बस एक क्षण
इस पहचान से करे शुरू , एक नई सृष्टि का सृजन